त्रिजुगीनारायण मंदिर - रुद्रप्रयाग जिला उत्तराखंड


त्रिजुगिनारायण मंदिर  
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                          यहां हुआ था भगवान शिव अौर देवी पार्वती का विवाह, आज भी मौजूद हैं निशानियां!!!!!!!
 
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में ‘त्रियुगी नारायण’ एक पवित्र जगह है। माना जाता है कि यहां भगवान शिव अौर देवी पार्वती का विवाह हुआ था। यहीं भगवान विष्णु अौर देवी लक्ष्मी का एक मंदिर है, जिसे शिव पार्वती के विवाह स्थल के रुप में जाना जाता है। मंदिर परिसर में ऐसी कई चीजें हैं, जिनका संबंध शिव-पार्वती के विवाह से माना जाता है।

मंदिर परिसर में अखंड धुनी है, भगवान शिव अौर माता पार्वती ने इसी कुंड के फेरे लिए थे। इस हवन कुंड में आज भी अग्नि प्रज्वलित रहती है। मंदिर में प्रसादस्वरूप लकड़ियां चढ़ाई जाती है। भक्त इस पवित्र हवन कुंड की राख अपने घर लेकर जाते हैं।

यह वह स्थान है जहां भगवान शिव अौर माता पार्वती विवाह के समय बैठे थे। इसी स्थान पर बैठकर भगवान ब्रह्मा ने भोलेनाथ अौर देवी पार्वती का विवाह करवाया था।

भगवान शिव अौर देवी पार्वती का विवाह ब्रह्मा जी ने करवाया था। ब्रह्मा जी ने विवाह में शामिल हेने से पहले जिस कुंड में स्नान किया था, उसे ब्रह्मकुंड के नाम से जाना जाता है। यहां आने वाले भक्त इस कुंड में स्नान करके ब्रह्मा जी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

जब भोलेनाथ का विवाह हुआ तो उन्हें एक गाय दान स्वरूप मिली थी। माना जाता है कि यहीं वह स्तंभ है, जहां गाय को बांधा गया था।


भोले नाथ और पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने माता पार्वती के भाई की भूमिका निभाई थी। जिस कुंड में स्नान करके भगवान विष्णु विवाह संस्कार में शामिल हुए थे, उसे विष्णु कुंड कहा जाता है।

भोलेनाथ के विवाह में भाग लेने आए सभी देवी-देवताअों ने जिस कुंड में स्नान किया उसे रुद्र कुंड कहा जाता है। इन सभी कुंडों में जल का स्त्रोत सरस्वती कुंड को माना जाता है।

रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने शिव विवाह के बारे में लिखा है,,,,,,,

*जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई। महामुनिन्ह सो सब करवाई॥
गहि गिरीस कुस कन्या पानी। भवहि समरपीं जानि भवानी॥

भावार्थ:-वेदों में विवाह की जैसी रीति कही गई है, महामुनियों ने वह सभी रीति करवाई। पर्वतराज हिमाचल ने हाथ में कुश लेकर तथा कन्या का हाथ पकड़कर उन्हें भवानी (शिवपत्नी) जानकर शिवजी को समर्पण किया॥

*पानिग्रहन जब कीन्ह महेसा। हियँ हरषे तब सकल सुरेसा॥
बेदमन्त्र मुनिबर उच्चरहीं। जय जय जय संकर सुर करहीं॥

भावार्थ:-जब महेश्वर (शिवजी) ने पार्वती का पाणिग्रहण किया, तब (इन्द्रादि) सब देवता हृदय में बड़े ही हर्षित हुए। श्रेष्ठ मुनिगण वेदमंत्रों का उच्चारण करने लगे और देवगण शिवजी का जय-जयकार करने लगे॥
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*बाजहिं बाजन बिबिध बिधाना। सुमनबृष्टि नभ भै बिधि नाना॥
हर गिरिजा कर भयउ बिबाहू। सकल भुवन भरि रहा उछाहू॥

भावार्थ:-अनेकों प्रकार के बाजे बजने लगे। आकाश से नाना प्रकार के फूलों की वर्षा हुई। शिव-पार्वती का विवाह हो गया। सारे ब्राह्माण्ड में आनंद भर गया॥

ई०निलेश रिशु पांडेय
कुशीनगर उत्तर प्रदेश

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