आओ देखे व समझें उत्तराखंड के कुछ जगहों के बारे में .....

ये फोटू मसूरी की है..


 ( वैसे तो मोबाइल पिक है, पर फोटू, फुल फ्रेम में देखिएगा, .. मजा आ जाएगा ) 


    देहरादून से धनौल्टी की ओर जाने वाली इस सड़क पर, जब  मसूरी के पीछे वाले हिस्से में पहुँचते हैं, और किस्मत अच्छी एवं जाड़े का खुला आसमान हो, तो ऐसा दृश्य सामने होता है, वरना यहाँ से तकरीबन 250 किलोमीटर दूर फैली हिमालय की इस श्रृंखला और यहाँ के बीच धुंध का एक परदा होता है, साल के 350 दिन।



      असल में पुरानी मसूरी इसी पार थी, जिसे लैन्डौर के नाम से जानते हैं, जहाँ अभी भी लेखक रस्किन बाँड और स्टीवन आल्टर जैसे लोग बचे हुए हैं। टाम आल्टर भी लैन्डौर में ही रहते थे। ये अंग्रेज साहबों का रिहायशी इलाका था, और वर्तमान मसूरी जो माल रोड के इर्द गिर्द बसी है, वो असल में  बाजार था। 

     



        समझिए, मसूरी की खूबसूरती यहाँ घूमने आनेवाले लोगोंं के हिस्से में शायद ही आ पाती है, क्योंकि असली मसूरी तो पहाड़ के दूसरी ओर है जहाँ देवदार, बाँज और चीड़ के मिश्रित जंगल, गहरी बहती पानी की धाराएँ, अभी भी थोडे बहुत जंगली जीव जैसे पैन्थर, लाल मुँह वाली लोमड़ी, भालू और सैकड़ों तरह के पंछी दिख जाते हैं। जिस ओर अभी मसूरी बसी है वहाँ तो कुछ भी नहीं है, सिवा सामने की घाटी में दिखाई पड़ते देहरादून के।



    पुरानी मसूरी की तरफ आइए और ये आपको मोहित कर लेगी।अनंत तक एक से बड़े और ऊँचे दूसरे पहाड़ और अंततः  ऊँचाई जमकर, जब बस ठहर जाए, ऐसे हिमालय का ये अद्भुत नजारा अगर न दिखे, तो किसी हिल स्टेशन आने का क्या मतलब? पर अधिकांश पर्यटकों को ये पता ही नहीं चलता कि वो असली मसूरी तो गए ही नहीं, बस बाजार घूम कर आ गए हैं।



ये समझ लीजिए असली मसूरी की ओर से दिखने वाली दुनिया का एक हिस्सा है...

हमारा फिर अगला प्लान धनौल्टी के लिए था....




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